रविवार, 21 जून 2015

भगवा

"भगवा" का मतलब और कुछ सवाल: -

पिछले दिनों हमारे पूर्व गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने "भगवा आतंक" का बयान देकर एक समुदाय विशेष को लट्टू तो कर लिया. लेकिन इस बयान पर जो प्रतिक्रिया आयी उसे देखकर सत्तारूढ़ कांग्रेस और गृहमंत्रीजी के होश उड़ गए. "सत्तारूढ़ कांग्रेस" अपना बचाव करती नजर आयी, वही सेक्युलरवाद कि नयी परिभाषा गढ़ने वाले गृहमंत्री इस मोर्चे पर बिलकुल अलग-थलग पड़ते नजर आये. हिन्दू साधू संतों के आलावा सिख, बौध धर्म के संतों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त कि क्यूंकि "भगवा या केसरिया रंग" न केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि सिख समुदाय और बौध धर्म के लिए पूजनीय है और फिर इस हिन्दू बहुल देश में "भगवा" को पवित्र न मानाने वाले कठमुल्लों कि तादाद ही कितना है इसलिए ये प्रतिक्रिया तो होनी ही थी. 

 "भगवा" एक पवित्र रंग है, जिसको सदियों से हमारे साधू-संत पूजते आ रहे है. सूर्य में जो आग है वो रंग भी भगवा है. "केसरिया" या "भगवा" रंग शौर्य और वीरता का प्रतिक है. इस रंग को पहनकर न जाने कितने वीरों ने अपना बलिदान दिया. साधू-संतों का समागम हो या, हिन्दू मंदिरों कि ध्वजा हो या फिर सजावट सभी में शान का रंग भगवा है. भगवा रंग में हिन्दू धर्म कि आस्था, दर्शन और जीवनशैली छुपी हुई है. भगवा या केसरिया सूर्योदय और सुर्यास्त का रंग है, मतलब हिंदू की चिरंतन, सनातनी, पुर्नजन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है यह। आग और चित्ता या कि अंतिम सत्य का भी यह रंग है। इसी रंग के वस्त्र धारण कर हिंदू, बौद्र साधू संत विदेश गए। दुनिया को शांति का धर्म संदेश दिया। दुनिया की दूसरी सभ्यताओं, संस्कृतियों के अपने रंग है जबकि भगवा की पहचान इसलिए है क्योंकि वह सिर्फ हिंदुस्तान में हिंदू-बौद्व-सिक्खों का प्रतिनिधि रंग रहा है। हिंदूओं के लिए यह शौर्य और त्याग का भी रंग है। महाराणा प्रताप और शिवाजी के झंडे भगवा ही तो थे। 

इसी भगवा और इसी भगवा के साथ चिंदबरम ने आंतकवाद को जोडा है। उन्होने बकायदा पुलिस प्रमुखों की बैठक के भाषण में भगवा आतंकवाद को देश के लिए नई चुनौती बताया। जाहिर है साध्वी प्रज्ञा और कुछ अज्ञात हिंदूवादी संगठनों के लोगों की धरपकड को चिदंबरम ने भारत के लिए खतरा माना है। यदि ऐसा है तब भी चिदंबरम देश के गृह मंत्री है। उन्हे मालूम है कि अभी तक अदालत में इन लोगों पर लगे आरोप पुष्ट नहीं हुए है। ऐसे में चिदंबरम कैसे यह मान सकते है कि आंतकवाद की घटनाओं से प्रतिक्रिया में पगलाएं पांच-छह सिरफिरे हिंदू लोग भगवा आतंकवाद की बानगी है। क्या इन छह-आठ लोगों की बानगी पर करोडों हिंदूओं के प्रतिक रंग भगवा से आंतकवाद को जोडा जाएगा। 
आज हर एक भारतीय चिदम्बरम से कुछ सवालों के जवाब जानना चाहता है. जिसका जवाब शायद "सेक्युलरवाद कि रोटियाँ तोड़ने वाली इस कांग्रेस के किसी भी "रीढविहीन नेता" के पास नहीं है". 

1. सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग भी "भगवा या "केसरिया" है. तो क्या सूर्य को आतंकवादी मान लिया जाए और "कांग्रेस" पार्टी द्वारा इसे उदय होने से रोका जाए ..??


2. आज कांग्रेस पार्टी मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए "भगवा" को आतंकवादी बता रही है. उसी पार्टी के कई बड़े नेताओं जैसे ( जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आज़ाद, सरदार तारासिंह इत्यादि-) ने 1931 के कराची अधिवेशन में "भगवा" को राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया. तो आदरणीय गृहमंत्री कृपया यह बताये कि क्या ये सभी नेता "आतंकवादी" थे..?? अगर ऐसा है तो "कांग्रेस पार्टी" जो जवाहारलाल नेहरू के नाम कि रोटियां तोड़ रही है उसको सबसे बड़ी "आतंकी" पार्टी ही मन जाए ..??


3. भगवा/केसरिया रंग भारतीय तिरंगे में सबसे ऊपर है तो क्या तिरंगे को "राष्ट्रीय ध्वज" न मानकर "आतंकवादी पताका" माना जाए..??


4. महाराणा प्रताप और शिवाजी के झंडे का रंग भगवा/केसरिया था. तो क्या ये माना जाए कि "देश" के लिए नहीं बल्कि "आतंक" के लिए लड़े थे.. ?? 

 5. "तिरंगे" में भगवा/केसरिया के आलावा " हरा" और "सफ़ेद" रंग भी है, तो क्या हरा रंग "इस्लामी" आतंक का और "सफ़ेद" रंग "इसाई आतंक" का प्रतिक है..?? 


दरअसल चिदम्बरम महोदय,  हर आम आदमी इस बात को समझ सकता है कि आपने "मुस्लिम वोट बैंक" कि राजनीती के लिए हिन्दू धर्म और भगवा को बदनाम किया है.. पर अबकी बार आपका ये पाशा उल्टा पड़ गया, इसलिए तो आपके पीछे भौं - भौं करने वाली सेल्युलरों कि जमात ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.. उनको ये भी पता चल गया कि बहुसंख्यकों पर आपके प्यारे अलाप्संख्यक कभी राजनीती नहीं कर सकते है. हालांकि चिदंबरम के बयान के बाद कांग्रेस पार्टी का रुख भी वोट के जोड़-घटाने के लिहाज से ठीक ही था। क्योंकि कांग्रेस पार्टी को देश के हर लोकतांत्रित संस्थानों में जितना वोट मिलता है, उसका करीब 80 प्रतिशत वोट हिंदुओं का होता है। यही जोड़-घटाना लगाकर कांग्रेस पार्टी ने गंभीर रुख अपना लिया। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस भगवा और भगवाधारियों का बड़ा सम्मान करती है। वह उसी का सम्मान करती है जिससे कि वोट मिले।

अच्छा तो ये होता कि आप सिर्फ "वेदांता" कि दलाली करते और ऐसे उलूल-जुलूल बयानों से बचाते तो शायद आपको गृहमंत्री के पद से हटाये जाने के बारे में न सोचा जाता . 


-- "अंगडाई लेते हिंदुत्व" कि ये प्रतिक्रिया जायज भी है क्यूंकि जब भी किसी अन्य मजहब पर संकट आया है तो दूर देशों में बैठे हिमायतियों ने जमकर हो-हल्ला मचाया है. जैसे कि इस्लाम के पैगम्बर के कार्टून डेनमार्क में बनने पर भी दंगे भारत में किये जाते हैं। चीन और रूस में देशद्रोही मुसलमानों का दमन होने पर दुनिया भर के मुसलमान उत्तेजित हो जाते हैं। इसीलिए 1962 में भारत पर आक्रमण करने वाली चीन की सेनाओं का भारत के कम्युनिस्टों ने ‘मुक्ति सेना’ कहकर स्वागत किया था और इसीलिए जनता शासन (1977-79) में जब भारत में लोभ, लालच और जबरन धर्मान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाने का विधेयक श्री ओमप्रकाश त्यागी ने संसद में प्रस्तुत किया, तो उसका दुनिया भर के ईसाइयों ने विरोध किया था।-


एक लेख में "श्री तरुण विजय" लिखते है कि देश में अभारतीय मानसिकता का वैचारिक विद्वेष इस पागलपन के चरम तक पहुंच गया है कि इटालियन मूल की उस महिला को सुपर प्राइम मिनिस्टर बनाने में किसी कांग्रेसी या सेक्युलर को परहेज़ नहीं होता, जिसने विवाह के बाद 13 साल सिर्फ यह सोचने में लगा दिए कि वह भारत की नागरिकता ग्रहण करे या न करे, लेकिन भारत के गौरव और तिरंगे की शान के प्रतीक विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर शक पैदा कर उन्हें डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी का सम्मान देना रोक दिया गया था। भारत से गोरे अंग्रेज चले गए पर उन काले अंग्रेजों का राज कायम रहा, जिनका दिल और दिमाग हिंदुस्तान में नहीं बल्कि रोम, लंदन या न्यूयॉर्क में है।

लेकिन इस सारे हंगामे को देखकर "दिल में इस बात का कुछ सुकून जरूर हुआ कि सदियों से सोया हुआ "हिंदुत्व" अब अंगडाई ले रहा है" और वो दिन दूर नहीं जब इन सब सेक्युलर "घटोतकचों" को अपना अंजाम पता चल जायेगा... 

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